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देवता: इन्द्र: ऋषि: प्रियमेधः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

तुवि॑शुष्म॒ तुवि॑क्रतो॒ शची॑वो॒ विश्व॑या मते । आ प॑प्राथ महित्व॒ना ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tuviśuṣma tuvikrato śacīvo viśvayā mate | ā paprātha mahitvanā ||

पद पाठ

तुवि॑ऽशुष्म । तुवि॑क्रतो॒ इति॒ तुवि॑ऽक्रतो । शची॑ऽवः । विश्व॑या । म॒ते॒ । आ । प॒प्रा॒थ॒ । म॒हि॒ऽत्व॒ना ॥ ८.६८.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:68» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः) हे राष्ट्र-प्रबन्धकर्ताओ ! आप वैसा प्रबन्ध करें, कि जिससे (जरसः+पुरा+नु) जरावस्था की प्राप्ति के पूर्व ही (विवस्वतः+हेतिः) कालचक्र का आयुध (नः+मा+वधीत्) हमको न मारे अर्थात् वृद्धावस्था के पहले ही हम प्रजागण न मरें, सो उपाय कीजिये। जो आयुध (कृत्रिमा) बड़ी कुशलता और विद्वत्ता से बना हुआ है और (शरुः) जो जगत् को अवश्य मार कर गिरानेवाला है ॥२०॥
भावार्थभाषाः - मरना सबको अवश्य ही है, परन्तु जरावस्था के पूर्व मरना प्रबन्ध और अविवेक की न्यूनता से होता है, अतः राज्य की ओर से रोगादिनिवृत्ति का पूरा प्रबन्ध होना उचित है ॥२०॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्याः=सभासदः ! यूयं तादृशं प्रबन्धं रचयत। येन। नः=अस्मान्। जरसः=जरायाः। पुरा नु=पूर्वं हि। विवस्वतः=कालस्य। हेतिरायुधम्। मा वधीत्। कीदृशी हेतिः। कृत्रिमा=क्रियया निर्वृत्ता। पुनः। शरुः=हिंसिका ॥२०॥